• 01 श्रीकांची प्रतिवादि भयंकर मठ “गुरुपरम्परा”

    50.00
    Book Name 01 श्रीकांची प्रतिवादि भयंकर मठ “गुरुपरम्परा”
    Book Author (मूल) –
    Book Author  (व्याख्या) –
    Published by श्रीकांची प्रतिवादि भयंकर मठ
    Description इस ग्रंथ में वाक्य गुरुपरम्परा, श्लोक गुरुपरम्परा, तीनों मंत्र, संप्रदाय के प्रथम आचार्य श्रीरंगनाथ भगवान से लेकर कांची प्रतिवादि भयंकर मठ के वर्तमान आचार्यों का तनियन, प्रतिवादि भयंकर अण्णा स्वामीजी और प्रतिवादि भयंकर अनंताचार्य स्वामीजी का सुप्रभात, प्रपत्ति, मंगलाशासन, वाळीतिरुनामं इत्यादि है । प्रतिवादि भयंकर आचार्यों के तिरुनक्षत्र और तीर्थ उत्सव, श्रीवैष्णवों के पांच व्रत का विवरण है । श्रीवैष्णवों के कर्तव्य का उल्लेख किया गया है।
  • 18 श्रीवरवरमुनि स्तोत्ररत्नावली

    50.00
    Book Name 18 श्रीवरवरमुनि स्तोत्ररत्नावली
    Book Author(मूल)
    Book Author(व्याख्या)
    Published by श्रीकांची प्रतिवादि भयंकर मठ
    Description श्रीवरवरमुनि स्वामीजी द्वारा विरचित दिव्य प्रबंध, स्तोत्र और उनके प्रति अन्य आचार्यों द्वारा विरचित स्तोत्र, भजन, आरती, अर्चना इत्यादि भी संकलन किया गया है। श्रीवरवरमुनी स्वामीजी को रामानुज स्वामीजी के प्रति भक्ति अवर्णनीय है जिसको हम उनके द्वारा विरचित यतिराज विंशति स्तोत्र में देख सकते हैं। रामानुजाचार्य के मुखोल्लास हेतु इन स्तोत्रों का अनुसंधान अवश्य करना चाहिये।तिवादी भयंकर अण्णा स्वामीजी विरचित स्तोत्रों का व्याखान और मूल स्तोत्रों का संकलन है। श्रीरंगनाथ सुप्रभात, श्रीवेंकटेश सुप्रभात, प्रपत्ति, स्तोत्र, मंगलाशासन, श्रीवरवरमुनि सुप्रभात का व्याख्यान है और कुछ अन्य स्तोत्रों का संकलन है। व्याख्या में शब्दार्थ, भावार्थ, गुढ़ार्थ ऐसे सरलतम भाषा में प्रस्तुत किया गया है। अर्थानुसंधान करने पर स्तोत्र पाठ में ज्यादा रुचि उत्पन्न होती है।
  • 03 श्रीरामानुज नुत्तंदादी मूल

    55.00
    Book Name 03 श्रीरामानुज नुत्तंदादी मूल
    Book Author (मूल) श्रीरंगामृत कवि
    Book Author  (व्याख्या) श्रीशैल अनंत पुरुष अकारनी श्रीसंपत्कुमाराचार्य स्वामीजी
    Published by श्रीकांची प्रतिवादि भयंकर मठ
    Description श्रीरंगामृत कवि ने रामानुज स्वामीजी की स्तुति करते हुये १०८ पाशूरों की रचना की है। प्रपन्न श्रीवैष्णवों के लिए नित्यासुंधेय है, जिसको प्रपन्न गायत्री के नाम से भी जाना जाता है । हर पाशूर में रामानुज स्वामीजी का वैभव, आलवार आचार्यों के प्रति उनका प्रेम, अवैदिक मार्गों का खण्डन इत्यादि वर्णन किया गया है । जिसकी संक्षेप व्याख्या की गयी है।
  • 04 उपदेश रत्नमाला मूल

    55.00
    Book Name 04 उपदेश रत्नमाला मूल
    Book Author (मूल) श्रीवरवरमुनी स्वामीजी
    Book Author (व्याख्या) श्रीशैल अनंत पुरुष अक्कारकनी श्रीसंपत्कुमाराचार्य स्वामीजी
    Published by श्रीकांची प्रतिवादि भयंकर मठ
    Description श्रीवरवरमुनी स्वामीजी ने सभी आलवारों के अवतार मास, नक्षत्र, अवतार क्रम, रामानुज स्वामीजी का वैभव, सहस्रगीति व्याख्यानों का प्रचार क्रम, श्रीवचनभूषण का वैभव, आचार्य निष्ठा का वैभव इत्यादियों का वर्णन है । इस प्रबंध में एक पाशूर वरवरमुनी स्वामीजी के शिष्य श्रीदेवराज मुनि द्वारा उनके वैभव को दर्शाते हये रचा गया है । आलवार आचार्यों के तिरुनक्षत्र उत्सव इत्यादि के समय अवश्यरूप से अनुसंधेय है । संक्षेप रूप से इस प्रबंध की व्याख्या की गयी हैं।
  • 02 श्रीरामानुज वैभव

    80.00
    Book Name 02 श्रीरामानुज वैभव
    Book Author (मूल) श्रीरामानुज स्वामीजी के शिष्य श्रीगरुड़वाहन स्वामीजी
    Book Author  (व्याख्या) श्री पंडित माधवाचार्य
    Published by श्रीकांची प्रतिवादि भयंकर मठ
    Description इस ग्रंथ में वाक्य गुरुपरम्परा, श्लोक गुरुपरम्परा, तीनों मंत्र, संप्रदाय के प्रथम आचार्य श्रीरंगनाथ भगवान से लेकर कांची प्रतिवादि भयंकर मठ के वर्तमान आचार्यों का तनियन, प्रतिवादि भयंकर अण्णा स्वामीजी और प्रतिवादि भयंकर अनंताचार्य स्वामीजी का सुप्रभात, प्रपत्ति, मंगलाशासन, वाळीतिरुनामं इत्यादि है । प्रतिवादि भयंकर आचार्यों के तिरुनक्षत्र और तीर्थ उत्सव, श्रीवैष्णवों के पांच व्रत का विवरण है । श्रीवैष्णवों के कर्तव्य का उल्लेख किया गया है।
  • 07 श्रीरामानुज स्तोत्ररत्नावली

    80.00
    Book Name 07 श्रीरामानुज स्तोत्ररत्नावली
    Book Author(मूल)
    Book Author (व्याख्या)
    Published by श्रीकांची प्रतिवादि भयंकर मठ
    Description इस ग्रंथ में रामानुज स्वामीजी विरचित और रामानुज स्वामीजी के प्रति विरचित स्तोत्रों का संकलन है। गद्य त्रय, रामानुज नुत्तंदादी, यतिराज विंशति, सुप्रभात, प्रपत्ति, मंगलम, वैभव स्तोत्र, अर्चना, आरती, भजन और उनके उपदेश इत्यादि इस ग्रंथ के भाग है । प्रायः रामानुज स्वामीजी से संबंधित सभी स्तोत्रों का संकलन किया गया है। श्रीरामानुज सहस्रमानोत्सव के समय सभी को अनुसंधान के लिए अनुकूल हो इस उदेश्य से इस ग्रंथ का प्रकाशन किया गया है।
  • 12 गद्य त्रय

    100.00
    Book Name 12 गद्य त्रय
    Book Author(मूल)  श्रीरामानुज स्वामीजी
    Book Author(व्याख्या)  श्रीशैल अनंत पुरुष अक्कारकनी श्रीसंपत्कुमाराचार्य स्वामीजी
    Published by श्रीकांची प्रतिवादि भयंकर मठ
    Description श्रीरामानुज स्वामीजी कृपामात्र प्रसन्नाचार्य की कृपा का अविष्कार है ।। उनकी कृपा हृदय में नहीं समाती हुई गद्यत्रय स्तोत्र के रूप में प्रकट हुई । रंगनाथ भगवान और रंगनायकी अम्माजी के सामने गद्यत्रय का निवेदन किया । आचार्यों का अभिप्राय हैं की भगवान और रामानुज स्वामीजी के बीच में साक्षात संवाद ही चला। इन गधों में भगवान की शरणागति का वैभव, परमपद के वैभव का सुंदर वर्णन किया गया है । परमपद के हर एक कौने का वर्णन रामानुज स्वामीजी इसमें करते हैं । इसकी अत्यंत सरल भाषा में व्याख्या की गयी है।
  • 14 रहस्यार्थ सर्वस्वम

    100.00
    Book Name 14 रहस्यार्थ सर्वस्वम
    Book Author(मूल)  श्रीलोकाचार्य स्वामीजी
    Book Author(व्याख्या)  श्रीशैल अनंत पुरुष अक्कारखनी श्रीसंपत्कुमाराचार्य स्वामीजी
    Published by श्रीकांची प्रतिवादि भयंकर मठ
    Description श्रीभगवान द्वारा प्रदान किए गये मूल मंत्र, द्वय मंत्र, चरम मंत्र इन तीनों पर लोकाचार्य स्वामीजी ने अपने मुमुक्षुप्पड़ी ग्रंथ में व्याख्या की है । मुमुक्षुप्पड़ी ग्रंथ की एकदम सरलम भाषा में व्याख्या इस ग्रंथ में की गयी है । प्रत्येक श्रीवैष्णव को पंच संस्कारित होने के बाद इस ग्रंथ का अध्ययन अवश्य करना चाहिये । जिससे स्वरूप ज्ञान होकर भगवत भागवत आचार्य चरणों में प्रेम बढ़ता है।
  • 19 स्तोत्र रत्न एवं च

    100.00
    Book Name 19 स्तोत्र रत्न एवं च
    Book Author(मूल)  श्री यामुनाचार्य स्वामीजी
    Book Author(व्याख्या)  श्रीशैल अनंत पुरुष अक्कारखनी श्रीसंपत्कुमाराचार्य स्वामीजी
    Published by श्रीकांची प्रतिवादि भयंकर मठ
    Description श्रीयामुनाचार्य स्वामीजी विरचित यह स्तोत्र प्रायः सभी श्रीवैष्णवों के नित्यानुसंधान में रहता हैं । जिनको आलवंदार और वरदवल्लभा स्तोत्र के नाम से भी जाना जाता है । सभी स्तोत्रों में अत्यंत श्रेष्ठ स्तोत्र होने के कारण इसे स्तोत्ररत्न कहते है। इसका अत्यंत सरल भाषा में शब्दार्थ और भावार्थ वर्णन किया गया है । हर एक श्लोक का विस्तृत व्याख्यान दिया गया है, जिससे उसको अर्थ के साथ अनुसंधान करने में अमृत के समान भोग्य हो जाता है ।