मूल : श्रीरामानुज स्वामीजी __ श्रीरामानुज स्वामीजी अपने परमपद प्रस्थान के पहले सभी शिष्यों को बुलाकर ७२ चरम उपदेश दिया जिसमें प्रमुखतः भगवान, भागवत, आचार्यों के प्रति श्रीवैष्णवों के आचरण, भगवत अपचार, भागवत अपचार, आचार्यों का वैभव इत्यादि का वर्णन किया है। अत्यन्त छोटा ग्रंथ है लेकिन इसका सार अत्यन्त गंभीर है। इन ७२ वाक्यों का भजन के रुप में भी संकलन है, जो श्रीवैष्णव भजन माला में प्रकाशित है।
15 श्रीगोदा चरित्र एवं श्रीरामानुज भक्ति चालीसा रचयिता
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श्रीकांची प्रतिवादि भयंकर मठ
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श्रीमान पंडित गदाधरजी पारीक श्रीगोदाम्बाजी और श्रीरामानुज स्वामीजी के संक्षेप जीवन चरित्र को वर्णन करनेवाले यह दोनों पद्य के रूप में है । समझने, पाठ करने में अत्यंत सरल है । प्रायः धनुरमास में श्रीगोदा चरित्र का अनुसंधान अनेक श्रीवैष्णव तिरुमालियों में किया जाता है।
श्रीप्रतिवादी भयंकर अण्णा स्वामीजी प्रथम प्रकाशन श्रीवेंकटेश सुप्रभात, प्रपति, स्तोत्र, मंगलाशासन इन सभी का संकलन है। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी की आज्ञानुसार प्रतिवादि भयंकर अण्णा स्वामीजी ने श्रीवेंकटेश भगवान की स्तुति के रूप में इनको निवेदन किया। जिसे आज तक तिरुमला श्रीवेंकटेश भगवान के सन्निधि में प्रतिदिन सुप्रभात में अनुसंधान किया जाता है।
श्रीप्रतिवादि भयंकर गादि स्वामीजी श्रीनिवासाचार्य स्वामीजी महाराज
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प्रकाशन मूल : श्रीप्रतिवादी भयंकर अण्णा स्वामीजी व्याख्या :श्रीप्रतिवादि भयंकर गादि स्वामीजी श्रीनिवासाचार्य स्वामीजी महाराज श्रीप्रतिवादी भयंकर अण्णा स्वामीजी विरचित स्तोत्रों का व्याखान और मूल स्तोत्रों का संकलन है। श्रीरंगनाथ सुप्रभात, श्रीवेंकटेश सुप्रभात, प्रपत्ति, स्तोत्र, मंगलाशासन, श्रीवरवरमुनि सुप्रभात का व्याख्यान है और कुछ अन्य स्तोत्रों का संकलन है। व्याख्या में शब्दार्थ, भावार्थ, गुढ़ार्थ ऐसे सरलतम भाषा में प्रस्तुत किया गया है। अर्थानुसंधान करने पर स्तोत्र पाठ में ज्यादा रुचि उत्पन्न होती है।
श्रीरामानुज स्वामीजी के एक हजार नामों का संकलन सहस्रनामावली में है। रामानुज स्वामीजी के सौशील्य, वात्सल्य, उनके द्वारा किए गए कैंकर्य, दिव्यदेश यात्रा, जीवात्माओं पर निर्हेतुक कृपा इस तरह से विभिन्न प्रकार के वैभव को दर्शानेवाले १००० नामों का संकलन हैं । जैसे अपने आचार्य जन कहते हैं भगवन्नाम से आचार्य नाम स्मरण ही ज्यादा श्रेयस्कर है । इसी उदेश्य पूर्ति हेतु इसका प्रकाशन किया गया है।
अनन्यगुरु भक्त चरमपर्व निष्ट आन्ध्रपूर्ण स्वामीजी द्वारा रामानुज स्वामीजी के वैभव का वर्णन करते हुये ११३ श्लोकों का रचा है, इन श्लोकों का संक्षेप भावार्थ इसमें प्रकाशित हैं। रामानुज स्वामीजी के जीवन चरित्र की सभी प्रमुख घटनाओं का वर्णन इसमें किया गया है।
इस ग्रंथ में रामानुज स्वामीजी के वैभव को भगवान, आलवार, रामानुज स्वामीजी के आचार्यों ने, रामानुज स्वामीजी स्वयं, रामानुज स्वामीजी के शिष्यों ने कैसे दर्शाया है इसका वर्णन है । तिरुमड़ी और तिरुवड़ी संबंध से कैसे सभी आचार्यों ने रामानुज स्वामीजी को ही अपना उद्धारक माना इसका बहत विशेष रूप से वर्णन है। अंगेजी में श्रीमान सारथी तोताद्रीजी ने इसकी व्याख्या की है । उसी के आधार पर हिन्दी में सम्पत रांदड रामानुजदास और श्रीराम मालपानी रामानुज श्रीवैष्णवदास ने भाषांतर किया है।