Description |
मूल : श्रीशठकोप स्वामीजी व्याख्या : श्रीशठकोप सूरी की सूक्तियों को सर्वोपरि माना जाता है । श्रीशठकोप सूरी कहते हैं भगवान ही गायें – गवायें – मै तो निमित्त मात्र हूँ, इस कारण से सर्वमान्य हैं। श्रीशठकोप स्वामीजी विरचित सहस्रगीति के ऊपर संक्षेप व्याख्यान है । सहस्रगीति को भगवद विषय के नाम से भी जाना जाता है, सहस्रगीति के ऊपर संप्रदाय में अनेक बड़े बड़े व्याख्यान है. उन सभी व्याख्यानों के सार को संक्षेप में विवरण किया गया है इसलिये इसे भगवद्वियषार कहा गया है । सहस्रगीति श्रीवैष्णव का मुखदर्पण है इसका अनुसंधान अवश्य करना चाहिये। |